Tokyo Olympics 2020: आपके ही 'कचरे' से बने हैं ओलंपिक मेडल, जिसे पाने को हर खिलाड़ी बेताब, जानिए पूरी सच्चाई
Written By: ज़ीबिज़ वेब टीम
Sun, Aug 01, 2021 04:57 PM IST
Tokyo Olympics 2020: टोक्यो में जारी ओलंपिक मुक़ाबलों में मेडल पाने के लिए सभी देशों से आए खिलाड़ी खूब पसीना बहा रहे हैं. भारतीय खिलाड़ियों की बात करें तो ज्यादातर खेलों में भारत की उम्मीदें अब खत्म हो चुकी है. शूटर्स से लेकर बॉक्सर मैरी कॉम और कई और खिलाड़ी हारकर वापस देश लौट चुके हैं. भारत की झोली में इस ओलंपिक अब तक सिर्फ एक ही मेडल आया है. लेकिन कई ऐसे देश भी हैं जो मेडलों की झड़ी लगा रहे हैं.
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हर खिलाड़ी का होता है मेडल पाने का सपना
ओलंपिक में मेडल पाने का सपना हर खिलाड़ी का होता है. मेडल टैली में टॉप पांच देशों में चीन, जापान, रूस, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का नाम है. जबकि भारत की गिनती मेडल टैली के नीचे के पांच देशों में है. भारत के हिस्से में अब तक सिर्फ एक ही मेडल आया है. ओलंपिक मेडल की इतिहास की बात करें तो ओलंपिक खेलों की शुरुआत साल 1896 में हुई थी. लेकिन खिलाड़ियों को मेडल देने की परंपरा साल 1904 में शुरू की गई.
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साल 1904 से शुरू हुई खिलाड़ियों को मेडल देने की परंपरा
अमेरिका के सेंट लुईस में साल 1904 में आय़ोजित ओलंपिक खेलों में खिलाड़ियों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए इनाम के रूप में मेडल बांटा गया. तब से लेकर अब तक मेडल देने की यह परंपरा चलती आ रही है. लेकिन इस साल जापान के टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलंपिक में मेडल को खास तरीके से बनाया गया है. दरअसल, इस ओलंपिक मेडलों को मोबाइल फोन रिसाइकल करके बनाए गए हैं.
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टोक्यो ओलंपिक में ऐसे बनाए गए हैं मेडल
कई बार मोबाइल फोन या लेपटॉप खराब होने के बाद लोग उसे कबाड़ी को दे देते हैं या फिर कचरे में फेंक देते हैं. जापान में पुराने मोबाइल और लेपटॉप की मदद से ही मेडल तैयार किया गया है. ओलिंपिक इतिहास में पहली बार पदकों के निर्माण के लिए रिसाइकल्ड मेटल्स का इस्तेमाल किया गया है. इन मेटल्स को पुराने मोबाइल फोन से निकाला गया है और फिर उसका इस्तेमाल किया गया है.
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